आवाज़ का रहस्य: यह तो ‘अनुदैर्ध्य तरंग’ है! 100-येन स्प्रिंग से सीखें अद्भुत भौतिकी

साइन्स ट्रेनर कुवाको केन हूँ। हर दिन एक नया प्रयोग है!

क्या आपने कभी ‘आवाज’ का असली रूप देखा है? ज़ाहिर है, आवाज खुद आँखों से नहीं दिखती। लेकिन साइंस क्लास में, हम इस अदृश्य दुनिया को किसी तरह ‘दिखाने’ की कोशिश करते हैं। इस बार, मैं एक ऐसा सीक्रेट हथियार बताऊँगा जो मिडिल स्कूल के पहले साल की ‘ध्वनि के गुण’ की क्लास में बहुत काम आता है। यह वह खिलौना है जिससे आप सबने कभी न कभी खेला होगा।

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💡 भौतिकी (Physics) ‘चीज़ों’ और ‘घटनाओं’ का खेल है
भौतिकी की पढ़ाई के मुख्य रूप से दो पहलू होते हैं:

‘चीजें’ (वस्‍तुएं): यानी कणों की गति। बॉल फेंकना, या कार का चलना, ये सब ‘यांत्रिकी’ (Mechanics) के अंतर्गत आते हैं। इनकी एक शक्ल होती है और ये दिखते हैं, इसलिए छात्रों को इनकी कल्पना करना आसान लगता है और वे इनसे परिचित होते हैं।

‘घटनाएं’ (Phenomena): यानी किसी प्रक्रिया का होना। यहाँ मुख्य किरदार है ‘तरंग’ (Wave)। इसमें वस्तु खुद नहीं चलती, बल्कि ‘ऊर्जा या कंपन एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं’। यह कॉन्सेप्ट (अवधारणा) प्राइमरी स्कूल में ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता, इसलिए जब मिडिल स्कूल के छात्र पहली बार ‘तरंग’ से मिलते हैं, तो बहुत से छात्र इसे दिमाग में ठीक से समझ नहीं पाते और उन्हें मुश्किल होती है।

इसीलिए, इस ‘अदृश्य तरंग’ को समझाने के लिए मैंने कुछ साल पहले स्लिंकी (Slinky), यानी खिलौने वाले स्प्रिंग का इस्तेमाल करना शुरू किया।

स्लिंकी (अमेज़न पर)

✨ 5000 रुपये के उपकरण से बेहतर, 100 रुपये का खिलौना
यह खिलौना स्प्रिंग, सच कहूँ तो, साइंस एजुकेशन के लिए सबसे बेहतरीन टूल में से एक है। यह सस्ते में, छोटी-मोटी दुकान या 100 रुपये वाले स्टोर पर मिल जाता है। स्कूल के बजट में भी, हर छात्र के लिए या दो छात्रों पर एक स्प्रिंग आसानी से खरीदा जा सकता है।

हाँ, साइंस लैब में 5000 रुपये का ‘शैक्षणिक स्प्रिंग’ भी होता है। इसका फायदा यह है कि यह थोड़ा भारी होता है, इसलिए तरंग की गति धीमी होती है और उसे देखना आसान होता है। लेकिन क्योंकि यह महंगा होता है, हम ज्यादा संख्या में नहीं खरीद पाते, और टीचर को इसे बस सामने करके दिखाना पड़ता है (प्रदर्शन प्रयोग)।

उससे कहीं बेहतर है कि ‘हर छात्र अपने हाथ से स्प्रिंग को पकड़े और तरंग बनाए’। सीखने का असर इसमें जबरदस्त होता है!

🌊 ‘अनुदैर्ध्य तरंग’ (Longitudinal Wave) और ‘अनुप्रस्थ तरंग’ (Transverse Wave) को महसूस करना
जब छात्रों को स्प्रिंग थमा दिया जाता है, तो वे खेलते-खेलते ही तरंगों के गुण अपने आप समझने लगते हैं।

अनुप्रस्थ तरंग (Transverse Wave): स्प्रिंग को दाएं-बाएं हिलाने पर, सांप की तरह लहरदार तरंग बनती है। यही है ‘अनुप्रस्थ तरंग’।

अनुदैर्ध्य तरंग (Longitudinal Wave): स्प्रिंग को आगे-पीछे धकेलने पर, स्प्रिंग के गैप कहीं ‘घने’ (संपीडन) और कहीं ‘विरल’ (विरलन, ढीले) होते हुए आगे बढ़ते हैं। यही है ‘अनुदैर्ध्य तरंग’। यह केंचुए के रेंगने जैसा दिखता है।

दरअसल, ‘आवाज’ इसी ‘अनुदैर्ध्य तरंग’ (संपीडन-विरलन तरंग) का रूप है। सिर्फ टेक्स्टबुक या ब्लैकबोर्ड पर चित्र देखकर समझ नहीं आता, लेकिन जब वे अपने हाथों से स्प्रिंग को चलाकर उस गति को महसूस करते हैं, तो उन्हें फौरन यह समझ आ जाता है कि “ओह! आवाज ऐसे हवा को धक्का देकर आगे बढ़ती है!”।

🌍 स्प्रिंग से भूकंप का मैकेनिज्म (तंत्र) भी समझें
इस स्प्रिंग प्रयोग को मिडिल स्कूल की भूविज्ञान (Geology) की क्लास, यानी ‘भूकंप’ के अध्ययन में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भूकंप के झटकों में, शुरुआती छोटे झटके (P-तरंग) और बाद में आने वाले बड़े झटके (S-तरंग) होते हैं, है ना?

P-तरंग (Primary Wave): सबसे पहले पहुँचने वाली तेज़ तरंग। यह एक ‘अनुदैर्ध्य तरंग’ है। यह आगे बढ़ने की दिशा में धक्का देती हुई चलती है, इसलिए यह तेजी से फैलती है।

S-तरंग (Secondary Wave): बाद में आने वाली विनाशकारी तरंग। यह एक ‘अनुप्रस्थ तरंग’ है। यह जमीन को बहुत जोर से हिलाती है, इसलिए इमारतों को ज्यादा नुकसान होता है।

खिलौने वाले स्प्रिंग का इस्तेमाल करके, इन दोनों तरंगों का अंतर आँखों के सामने दिखाया जा सकता है। “सौ बातें सुनने से अच्छा एक बार देखना” नहीं, बल्कि “सौ बातें सुनने से अच्छा एक बार अनुभव करना”। शब्दों से समझाने के बजाय, खुद हाथ चलाकर मजा लेना ही साइंस को पसंद करने का सबसे आसान तरीका है!

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