मैकेनिकल पेंसिल की सीसे से बने इलेक्ट्रोड!? “कॉपर क्लोराइड के विद्युत अपघटन” से रासायनिक परिवर्तन को ट्रैक करें (माइक्रोस्केल प्रयोग से पर्यावरण के अनुकूल!)

मैं हूँ आपका साइंस ट्रेनर, कुवाको केन। हर दिन एक नया प्रयोग!

दोस्तों, जब आप विज्ञान के प्रयोग के बारे में सोचते हैं, तो आपके दिमाग में क्या आता है? बीकर और फ्लास्क की लंबी कतारें, ढेर सारे मुश्किल दिखने वाले रसायन… शायद ऐसी ही कोई छवि बनती होगी। पर असल में, विज्ञान के सार को समझने का एक ऐसा भी तरीका है जो न केवल आसान है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अच्छा है!आज हम बात करेंगे ‘कॉपर क्लोराइड का इलेक्ट्रोलिसिस’ (Copper Chloride Electrolysis) की, जो मिडिल स्कूल साइंस में खूब जाना-माना प्रयोग है। लेकिन इसे हम एक बहुत ही छोटे से उपकरण – #माइक्रोप्लेट – का इस्तेमाल करके, #माइक्रोस्केलएक्सपेरिमेंट के रूप में करेंगे। यह सिर्फ बिजली गुजारने का खेल नहीं है। इसमें नीला घोल ‘पारदर्शी’ हो जाता है और एक ‘धातु’ दिखती है जो पहले थी ही नहीं! यह किसी जादू से कम नहीं है, और आप इस रासायनिक बदलाव को अपनी आँखों के सामने देख सकते हैं!नन्हीं-सी लैब ‘माइक्रोस्केल’ का जादू ✨यह #माइक्रोस्केलएक्सपेरिमेंट वह तरीका है जिसे मैंने अपने पुराने स्कूल में भी अपनाया था। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि हम इसमें रसायनों और पानी की मात्रा को कम कर देते हैं, जिससे प्रयोग के बाद निकलने वाला ‘अपशिष्ट’ (Waste Liquid) बहुत कम हो जाता है। यह पर्यावरण-हितैषी है, साथ ही तैयारी और सफाई दोनों आसान हो जाती हैं, और आप सुरक्षित रूप से प्रयोग का मज़ा ले सकते हैं। यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है!छोटे पैमाने पर होने के कारण, बदलाव भी बहुत तेजी से होते हैं, जिससे अवलोकन (observation) करना एकदम सही हो जाता है। अगर आप माइक्रोस्केल प्रयोगों के बारे में और जानना चाहते हैं, तो इस रिसर्च पेपर को ज़रूर देखें। इसमें प्रयोग की बारीकियाँ और कॉपर क्लोराइड घोल बनाने का तरीका भी विस्तार से बताया गया है:

माइक्रोस्केल प्रयोगों पर इस रिसर्च पेपर में विस्तार से बताया गया है।

प्रयोग कैसा दिखता है, यह देखने के लिए सबसे पहले यह वीडियो देखें!https://youtu.be/pXVSWsXLMNUप्रयोग की तैयारी और ‘वाह!’ वाली तरकीबेंप्रयोग में इस्तेमाल होने वाला ‘कॉपर क्लोराइड विलयन’ (Copper Chloride Solution) नीले रंग का द्रव होता है। विज्ञान के प्रयोगों में, हमें रसायनों की सांद्रता (concentration) की सटीक गणना करके ही घोल बनाना होता है।

【10% कॉपर(II) क्लोराइड डाइहाइड्रेट विलयन बनाने की विधि】

कॉपर(II) क्लोराइड डाइहाइड्रेट CuCl2・2H2O का आणविक भार (Formula Weight) = 170.48

10% विलयन बनाने के लिए, हाइड्रेशन वॉटर (जल-योजन जल) को छोड़कर 10 ग्राम वजन वाली मात्रा को तौलना पड़ता है। CuCl2=63.5+35×2=133.5 और 2H2O=2×18=36 है, इसलिए,

अतः, 13 ग्राम कॉपर(II) क्लोराइड डाइहाइड्रेट क्रिस्टल में पानी मिलाकर कुल वजन 100 ग्राम किया जाता है।

यह थोड़ी-सी तकनीकी गणना है, जो तब ज़रूरी होती है जब विलयन में ‘हाइड्रेशन वॉटर’ (क्रिस्टल में मौजूद पानी) होता है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि इस प्रयोग के लिए कॉपर क्लोराइड की कम सांद्रता भी काम कर जाती है (3% भी चलेगा)। रिसर्च पेपर में एक सेल (प्रयोग का छेद) में $4\text{ cm}^{3}$ की मात्रा बताई गई है, पर मैंने तुलना के लिए $1\text{ cm}^{3}$ की मात्रा भी तैयार की थी।ज़रा सोचिए, अगर 4 छात्रों के 10 ग्रुप (40 छात्रों की क्लास) भी यह प्रयोग करें, तो कुल मिलाकर केवल $4\text{ cm}^{3} \times 10 = 40\text{ cm}^{3}$ लगेगा। चार क्लास को मिलाकर भी सिर्फ $160\text{ cm}^{3}$ (दूध के पैकेट के $1/6$ के बराबर) में काम हो जाएगा! यह सचमुच में कितना इको-फ्रेंडली है!

(मैंने तुलनात्मक प्रयोग के लिए थोड़ी अधिक मात्रा बनाई है।)प्रयोग विधि और सुरक्षा उपायप्रयोग की विधि बहुत सरल है:

  1. सेल में कॉपर(II) क्लोराइड डाइहाइड्रेट विलयन डालें।
  2. कार्बन रॉड इलेक्ट्रोड डालें, और 5V की DC वोल्टेज दें।
  3. एनोड (+ ध्रुव) और कैथोड (- ध्रुव) पर होने वाले बदलावों को देखें।
  4. एनोड और कैथोड से निकलने वाली चीज़ों की जाँच करें।

यहाँ एक रोचक जुगाड़ है। इलेक्ट्रोड के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘कार्बन रॉड’ की जगह आप ‘2mm की मोटी लीड वाली पेंसिल’ (Mechanical Pencil Lead) का उपयोग कर सकते हैं!

2mm की लीड वाली पेंसिल की लीड

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पेंसिल की लीड भी पेंसिल की तरह ही ‘कार्बन’ से बनी होती है, और यह बिजली की अच्छी संवाहक होती है।लेकिन, यहाँ ‘शॉर्ट सर्किट से बचाव’ बहुत ज़रूरी है। अगर + ध्रुव और – ध्रुव घोल के अंदर एक-दूसरे से चिपक जाते हैं, तो बिजली घोल से न जाकर सीधे इलेक्ट्रोडों के बीच से बह जाएगी (शॉर्ट सर्किट हो जाएगा), और इलेक्ट्रोलिसिस ठीक से नहीं हो पाएगा। यह बहुत खतरनाक है। इसीलिए, हमने इलेक्ट्रोड को स्थिर रखने के लिए थर्मोकोल (Styrofoam) को छोटे टुकड़ों में काटकर एक स्टैंड बनाया।अगर थर्मोकोल न हो, तो भी इलेक्ट्रोड को ‘V-आकार’ में फैलाकर रखें और उन्हें हर कीमत पर एक-दूसरे से न चिपकने देने की कड़ी हिदायत देना महत्वपूर्ण है।

V-आकार में रखना ही कुंजी है

सर्किट को हमने इस तरह से बनाया कि एक ही पावर सप्लाई से दो प्रयोग एक साथ किए जा सकें। वोल्टेज 5V है।अब प्रयोग शुरू! नीले घोल का अद्भुत रूपांतरण 🤩इलेक्ट्रोड लगाकर, हमने इलेक्ट्रोलिसिस शुरू किया!जैसे ही हमने घोल को ध्यान से देखा… बदलाव तुरंत दिखने लगा। कैथोड (- ध्रुव) की ओर कोई भूरा पदार्थ चिपकता हुआ दिखाई दिया। और एनोड (+ ध्रुव) से छोटे-छोटे बुलबुले निकलने शुरू हो गए।करीब 10 मिनट तक वोल्टेज लगाते रहने के बाद… जो घोल इतना गहरा नीला था, वह पूरी तरह से रंगहीन (पारदर्शी) हो गया! (नोट: अगर आप समय बचाना चाहते हैं, तो 9V के आसपास भी प्रयोग कर सकते हैं, पर शॉर्ट सर्किट का खतरा और बढ़ जाता है!)पहेली सुलझाओ: ‘गायब हुए नीले रंग’ और ‘आए हुए बुलबुलों’ का रहस्यअब इस रहस्यमय बदलाव के पीछे का सच जानें। सबसे पहले, घोल के ‘नीले रंग’ का कारण ‘कॉपर आयन’ ($\text{Cu}^{2+}$) नाम के कण होते हैं। जब कॉपर क्लोराइड ($\text{CuCl}_{2}$) पानी में घुलता है, तो यह कॉपर आयन ($\text{Cu}^{2+}$) और क्लोराइड आयन ($\text{Cl}^{-}$) में बँट जाता है।【कैथोड (- ध्रुव) पर होने वाला बदलाव】कैथोड (- ध्रुव) की ओर धनात्मक चार्ज वाले ‘कॉपर आयन’ ($\text{Cu}^{2+}$) आकर्षित होते हैं। वे पावर सप्लाई से आए हुए इलेक्ट्रॉन ($\text{e}^{-}$) को लेते हैं और कॉपर ($\text{Cu}$) परमाणु बन जाते हैं, जो कि विद्युत रूप से उदासीन होता है। इलेक्ट्रोड पर चिपकने वाला यही भूरा पदार्थ है! घोल से नीले रंग के ‘कॉपर आयन’ लगातार ‘कॉपर’ में बदलते जा रहे थे, जिसकी वजह से घोल का रंग गायब हो गया और वह पारदर्शी बन गया।【एनोड (+ ध्रुव) पर होने वाला बदलाव】एनोड (+ ध्रुव) की ओर ऋणात्मक चार्ज वाले ‘क्लोराइड आयन’ (Cl−) आकर्षित होते हैं। वे अपने इलेक्ट्रॉन (e−) खो देते हैं और क्लोरीन (Cl2​) नामक गैस में बदल जाते हैं। वे छोटे-छोटे बुलबुले वास्तव में वही क्लोरीन गैस थे, जिसकी महक आपको स्विमिंग पूल में आती है!क्लोरीन में ‘रंग उड़ाने वाला गुण’ (Bleaching Action) होता है, यानी यह रंग को फीका कर सकता है। हमने छात्रों को यह क्लोरीन की जाँच स्वतंत्र रूप से करने की छूट दी। कुछ ग्रुप ने फ़िल्टर पेपर पर लाल वाटर कलर इंक डालकर उसे एनोड के पास रखा ताकि विरंजन प्रतिक्रिया (decolorization reaction) की पुष्टि हो सके, कुछ ने फ़िल्टर पेपर को घोल में डुबोया, और कुछ ने बगल वाले सेल में पानी और इंक डालकर बुलबुलों को उसमें जाने दिया – सबने अपनी-अपनी तरह से प्रयोग किया। हमने यह भी पता लगाया कि हरे रंग का हाईलाइटर इस्तेमाल करने से रंग का बदलाव बहुत साफ दिखाई देता है! यह भी एक मजेदार खोज थी।विज्ञान का बढ़ता दायराप्रयोग यहाँ खत्म नहीं होता। कैथोड (- ध्रुव) पर चिपके ‘कॉपर’ को फ़िल्टर पेपर पर निकालकर, जब आप उसे चम्मच से रगड़ते हैं, तो उसकी चमकीली धात्विक चमक दिखाई देती है। इसके अलावा, एक ग्रुप ने गैस बर्नर का इस्तेमाल करके घोल या चिपके हुए कॉपर को जलाकर ‘फ्लेम टेस्ट’ (Flame Test) भी किया।कॉपर को आग में डालने पर नीला-हरा रंग आता है। यही सिद्धांत आतिशबाजी (fireworks) को रंग देने में भी इस्तेमाल होता है। अपने हाथों से निकाले गए पदार्थ की ‘कॉपर’ होने की पुष्टि विभिन्न तरीकों से करना… यही तो विज्ञान का असली मज़ा है! सिर्फ ‘इलेक्ट्रोलिसिस’ शब्द को रटने के बजाय, जब आप अपनी आँखों के सामने पदार्थ को बदलते, रंग को गायब होते, और एक नए पदार्थ को जन्म लेते देखते हैं, तो रसायन विज्ञान में आपकी रुचि गहरी हो जाती है। यह एक ऐसा प्रयोग है जिसमें सचमुच बहुत सारी नई खोजें होती हैं, और यह बहुत रोमांचक है। मैंने माइक्रोस्केल प्रयोगों के बारे में यह किताब भी खरीदी है।

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